मेवाड़ के विश्व प्रसिद्ध जगदीश मंदिर को इस वर्ष 365 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। स्वप्न में भगवान जगन्नाथ से प्राप्त आदेश पर महाराणा जगतसिंह (1628-54) द्वारा निर्मित इस विष्णु पंचायतन मंदिर में, मई 13, 1652 ई. को प्राण प्रतिष्ठा हुई थी। निज मंदिर में अत्यंत मनोरम चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा, लक्ष्मी जी व बांके बिहारी की प्रतिमाएं हैं। परिक्रमा में गणपति, सूर्य, माँ अन्नपूर्णा, दुर्गा व शिव-पार्वती के मंदिर भी हैं। मंदिर निर्माण के 28 वर्ष बाद जनवरी 1680 में महाराणा राजसिंह के काल में औरंगजेब द्वारा इस मंदिर को तोड़ने का विफल प्रयास करने पर इसकी रक्षार्थ 20 सैनिक शहीद हुए थे। औरंगजेब ने रूहिल्ला खान और यकाताज खान के नेतृत्व में मंदिर को तोड़ने सेना भेजी थी। मेवाड़ के अन्य भागों में आक्रमण करने पर भी औरंगजेब को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। तब हसन अली खान के नेतृत्व में औरंगजेब की सेना ने बाहरी भागों पर आक्रमण कर लूटपाट की थी, जिसके अंत में 29 जनवरी 1680 को मेवाड़ से लूटी गई सामग्री 20 ऊंटों पर ले जाकर उसने औरंगजेब को प्रस्तुत की थी। उसने मेवाड़ के समीपवर्ती भागों में 172 अन्य मंदिरों को नष्ट करना भी बतलाया था। मंदिरों को ध्वस्त करने का क्रम औरंगजेब के 9 अप्रैल 1669 के आदेश के बाद से ही प्रारंभ हो गया था जिसके डर से ही वल्लभ संप्रदाय के पीठाधीश्वर ने भगवान श्रीनाथ जी को ब्रज में गोवर्द्धन पर्वत से लाकर मेवाड़ में उनकी सुरक्षा की थी। स्वयं महाराणा राजसिंह ने 5 दिसम्बर 1671 को मेवाड़ आगमन पर सिंहाड़ (वर्तमान नाथद्वारा) में भगवान श्रीनाथ जी की अगवानी की थी। मेवाड़ के अति प्राचीन मंदिरों में भगवान चारभुजा व रूप नारायण केे मंदिर हैं, जहां 5100 वर्ष पूर्व पाण्डवों का भी आगमन हुआ था। चारभुजा मंदिर पर भी कई बार आक्रमण हुआ है। मेवाड़ क्षेत्र के अति प्राचीन रामायणकालीन मंदिरों में सीसारमा का वैजनाथ महादेव मंदिर व प्रतापगढ़ का सीतामाता मंदिर है।